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लखनऊः बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्था का हाल पूछने वाला कोई नहीं, अधिकारियों के फ़ोन बंद

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उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में कोरोना संकट हर बीतते दिन के साथ गंभीर होता जा रहा है. जितना संकट गहरा रहा है, प्रशासन उतना ही उदासीन होता जा रहा है.

हद ये हो गई है कि ज़िले के स्वास्थ्य विभाग और प्रशासन से जुड़े अधिकारियों को अब शीर्ष अधिकारियों के नाराज़ होने की भी चिंता नहीं है.

लखनऊ में अब कोरोना संक्रमण के पांच हज़ार से अधिक मामले हैं. आज ही तीन सौ से अधिक नए मामले सामने आए हैं.

हाल ही में वायरल हुई लखनऊ की इस तस्वीर ने स्वास्थ्य व्यवस्था की पोल खोल कर रख दी है. इस तस्वीर ने स्वास्थ्य व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं.

लेकिन लखनऊ में आजकल सबसे बड़ी समस्या ये है कि जवाब देने वाला कोई नहीं है. ज़िलाधिकारी, यानी डीएम, ज़िले के सबसे बड़े अधिकारी होते हैं. उनके पास असीमित अधिकार और संसाधन हैं.

लेकिन जनता के प्रति उनकी ज़िम्मेदारी का आलम ये है कि वो कोरोना से जुड़े आंकड़ें और जानकारियां भी सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध नहीं करवा पा रहे हैं.

इसे उदासीनता कहा जाए या आपराधिक लापरवाही, जहां एक और प्रदेश के अधिकतर ज़िलों के ज़िलाधिकारी अपने सोशल मीडिया अकाउंट्स के ज़रिए कोरोना से जुड़ी जानकारियां सार्वजनिक कर रहे हैं, लखनऊ के प्रशासन ने बीते पांच दिनों से चुप्पी ही साध रखी है.

आम लोग तो आम लोग, पत्रकारों या शीर्ष अधिकारियों तक का फ़ोन लखनऊ के अधिकारी नहीं उठा रहे हैं.

पत्रकारों के लिए रिपोर्टिंग करना भी बेहद मुश्किल हो गया है. लखनऊ पोस्ट से बात करते हुए रत्नेश श्रीवास्तव कहते हैं, “यहां पर रिपोर्टिंग का अनुभव बहुत अच्छा नहीं है. कोविड-19 से जुड़ी जानकारियां प्रशासन से आसानी से नहीं मिल पा रही हैं. बहुत कोशिश करने पर भी सटीक जानकारियां नहीं मिलती हैं, अधिकारी जानकारी नहीं देते हैं. सरकारी कार्यालय का या अधिकारी का सीयूजी नंबर बार बार मिलाने पर भी नहीं उठता है.”

रत्नेश कहते हैं, “सोशल डिस्टेंसिंग या मास्क को लेकर सरकार उदासीन है, नियम फॉलो नहीं हो रहे हैं. आईपीएस अधिकारी या आईएएस अधिकारी भी दौरे पर ऐसे ही इलाक़ों में जाते हैं जो पहले से ही नीट एंड क्लीन हैं.”

“जिन इलाक़ों में समस्याएं हैं उन्हें नज़रअंदाज़ किया जा रहा है. जिन इलाक़ों में कोरोना केस निकल रहे हैं वहां आशा कार्यकर्ता ही जा रही हैं, कोई शीर्ष अधिकारी नहीं जा रहा है.”

लेकिन अगर आप प्रशासन का सोशल मीडिया देखें तो लगेगा कि सबकुछ बहुत अच्छा चल रहा है. सिर्फ़ वहीं जानकारियां जनता को दी जा रही हैं जो प्रशासन के लिए गुड पब्लिक रिलेशन हैं.

आलोचनात्मक सवालों को दबा दिया जा रहा है. रत्नेश कहते हैं, “इन दिनों लखनऊ में ज़मीन पर हालात बहुत अच्छे नहीं हैं, सोशल मीडिया पर बड़े-बड़े दावे किए जा रहे हैं.”

लखनऊ पोस्ट की टीम ने एक सप्ताह तक लखनऊ के ज़िलाधिकारी से फ़ोन पर संपर्क करने की कोशिश की लेकिन हर बार फ़ोन कॉल डायवर्ट होती रही. व्हाट्सएप पर भेजे गए संदेश इग्नोर कर दिए गए.

जनता को सूचनाएं उपलब्ध कराने के लिए ज़िले में एक सूचना अधिकारी भी नियुक्त होता है. जिसके पास तमाम संसाधन होते हैं. लेकिन सूचना अधिकारी की ओर से भी कोरोना वायरस से जुड़ी जनहित की जानकारियां प्राप्त नहीं हो सकीं.

लखनऊ के मुख्य चिकित्साधिकारी का फ़ोन हमेशा बंद रहता है. दफ़्तर का नंबर उठता नहीं है. उनके स्टेनो हमेशा बैठक में होते हैं.

सीएमओ के भी एक सूचना अधिकारी हैं जिनकी ज़िम्मेदारी कोरोना वायरस से जुड़ी जानकारियां जनहित में सार्वजनिक करना है. वो न फ़ोन पर जवाब देते हैं न व्हाट्सएप पर.

अंत में हम ये अपील ही कर सकते हैं कि लखनऊ प्रशासन जनहित की जानकारियां सोशल मीडिया पर साझा करना शुरू कर सकें.

कोरोना के ख़िलाफ़ लड़ाई को जनता को जागरुक किए बिना नहीं जीता जा सकता है. ये मुश्किल वक़्त है, प्रशासनिक अधिकारियों को अपनी ईगो या सत्ता की हनक से बाहर निकलकर जनहित में काम करना होगा.

जब हालात ठीक होंगे, वो अपनी ईगो को सेटिसफाई कर सकते हैं, अपनी पूरी हनक में रह सकते हैं. लेकिन कम से कम महामारी के वक़्त जनता के प्रति संवेदनशीलता दिखाना ज़रूरी है.

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