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मेरठः ज़मीन से उठे करोड़पति कारोबारी की आत्महत्या से सुलग रहे हैं सवाल

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पश्चिमी उत्तर प्रदेश के आनंद अस्पताल के संस्थापक हरिओम आनंद ने शनिवार को अपने फॉर्महाउस पर सल्फ़ास खाकर ख़ुदकुशी कर ली. आज उनका अंतिम संस्कार मेरठ में कर दिया गया.

66 साल के हरिओम आनंद की आत्महत्या ने मौजूदा दौर की व्यवस्था पर कई गंभीर सवाल खड़े किए हैं.

आनंद अस्पताल पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सबसे बड़े निजी अस्पतालों में शुमार है और कई ज़िलों के मरीज़ यहां इलाज कराने आते हैं. एक दौर था जब ये अस्पताल अपनी चिकित्सीय सेवाओं के लिए पहचाना जाता था.

लेकिन अब इसके मालिक की आत्महत्या और अस्पताल पर चढ़े क़र्ज़ ने इसे मंझधार में फंसा दिया है.

स्थानीय मीडिया की रिपोर्टों के मुताबिक हरिओम आनंद की आत्महत्या की वजह भी क़र्ज न चुका पाना है. रिपोर्टों के मुताबिक वो पहले भी कई बार आत्महत्या की कोशिश कर चुके थे और इन दिनों अधिकतर समय अपने फॉर्महाउस पर ही रह रहे थे.

चार सौ करोड़ रुपए तक का क़र्ज

कहा जा रहा है कि उन्होंने इस अस्पताल के निर्माण और संचालन के लिए कई कारोबारियों और डॉक्टरों से क़र्ज़ लिया जिसे लौटा पाने में वो असमर्थ हो गए थे. ये क़र्ज़ निजी तौर पर मौटे ब्याज़ पर दिया गया था.

हाल के महीनों में उन पर क़र्ज़ वापस करने का दबाव बढ़ता ही जा रहा था जिसे वो सहन नहीं कर पाए और सल्फ़ास खाकर जान दे दी.

ज़हर खाने के बाद वो कुछ देर तक होश में थे, उनका ड्राइवर उन्हें फॉर्महाउस से उनके अस्पताल तक लेकर गया लेकिन दो घंटे की मशक्कत के बावजूद उन्हें बचाया नहीं जा सका.

अपने अंतिम पलों में डॉ. हरिओम आनंद ने अस्पताल के डॉक्टरों को बुलाया और कहा कि वो क़र्ज़ उतार नहीं पाए, उनकी बेटी अब अकेली है, उसका साथ ना छोड़ें.

मेरठ के मीडिया की रिपोर्टों के मुताबिक हरिओम आनंद पर चार सौ करोड़ रुपए तक का क़र्ज़ था. हालांकि इसकी अधिकारिक तौर पर कोई पुष्टि नहीं हुई है. उनके परिवार ने भी अभी इस बारे में कुछ नहीं कहा है.

मेरठ के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक अजय कुमार साहनी का कहना है कि आत्महत्या के कारणों की अभी जांच की जा रही है. जांच के बाद ही कुछ कहा जा सकता है.

हरिओम आनंद को क़र्ज़ देने वाले लोग उन पर लगातार अपना पैसा लौटाने के लिए दबाव बना रहे थे. बीते साल मई में उनके अस्पताल के बाहर लोगों ने प्रदर्शन भी किया था.

एक क़र्ज़दार ने तब मीडिया से बात करते हुए कहा था, ‘मैंने अपने दोस्तों और रिश्तेदारों से लेकर पैसा इन्हें दिया. चार करोड़ अस्सी लाख रुपए दिए, किसानों के मुआवज़े के पैसे हैं, गन्ने के पैसे हैं, मेहनत का पैसा है जिसे अब ये लौटा नहीं रहे हैं.’

आनंद अस्पताल के प्रशासन ने तब क़र्ज़ मांग रहे लेनदारों के ख़िलाफ़ ही एफ़आईआर भी दर्ज करवाई थी.

ज़मीन से कैसे उठे थे आनंद

हरिओम आनंद के पिता की मेरठ के खंदक बाज़ार में खद्दर की दुकान चलाते थे. उनके परिवार के कुछ लोग अब भी इस काम से जुड़े हैं.

हरिओम आनंद 1995 में घरेलू कारोबार से अलग होकर डॉ. अतुल कृष्ण के साथ मिलकर काम करने लगे. दोनों मिलकर सुभारती अस्पताल में स्थापित किया. बाद में सुभारती यूनिवर्सिटी की नींव भी यहीं से पड़ी.

पार्टनर से विवाद और फिर नया अस्पताल

लेकिन हरिओम आनंद और अतुल कृष्ण के बीच विवाद हो गया जो थानों, कचहरी से होते हुए लंबी आदवत में बदल गया. बाद में समझौते के साथ इस विवाद का पटाक्षेप हुआ.

अतुल कृष्ण से अलग होकर हरिओम आनंद ने अपना अलग अस्पताल अगस्त 2007 में शुरू किया जो जल्द ही मेरठ का सबसे चर्चित अस्पताल बन गया. आसपास के ज़िलों से भी यहां मरीज़ आने लगे.

आनंद सुभारती अस्पताल के भी पैसों के लेनदेन का काम देखते थे. जाननेवाले बताते हैं कि उन्होंने सुभारती के लिए भी लोगों से क़र्ज़ लिए और फिर ये क़र्ज़ मुनाफ़े के साथ लौटाए.

सुसाइड नोट भी आया सामने

मेरठ के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक को संबोधित एक नोट भी सामने आया है जिसमें हरिओम आनंद ने सुभारती समूह पर गंभीर आरोप लगाए हैं. हालांकि इस पत्र की स्वतंत्र तौर पर पुष्टि नहीं की जा सकी है. ये पत्र 26 जून को लिखा गया है और इस टाइप किए गए पत्र पर डॉ हरिओम आनंद के हस्ताक्षर हैं.

पैसों के लेनदेन के लिए थी पहचान

चिकित्सा को कारोबार बना देने वाले हरिओम आनंद ने पैसों के लेनदेन में शहर में अपनी साख बना ली थी. वो क़र्ज़ को मोटे ब्याज़ के साथ चुकाया करते थे, इसलिए ही शहर के कई बड़े कारोबारियों ने अपना पैसा बढ़ाने के लिए उन्हें क़र्ज़ दिया.

हरिओम आनंद अस्पताल से पैसा कमा रहे थे, मोटा क़र्ज़ बाज़ार से उठा रहे थे और उसे संपत्तियों में निवेश कर रहे थे.

नोटबंदी के बाद हरिओम आनंद के ये निवेश फंस गए. पैसा आना बंद हुआ लेकिन लेनदारी जारी रही.
मई 2019 तक हालात ऐसे हो गए कि उनके अस्पताल के बाहर लेनदार इकट्ठा होने लगे.

कई शिकायतें स्थानीय थानें में दी गईं. नोकझोक हुई. आरोप प्रत्यारोप हुए. लेकिन इस सबके बीच अस्पताल चलता रहा.

लेकिन ख़राब होती वित्तीय सेहत का असर अस्पताल पर भी होता रहा. और अब हालात ये हैं कि कई डॉक्टर अपने आप को इस अस्पताल से अलग कर चुके हैं.

हरिओम आनंद की मौत से कई सवाल खड़े होते हैं और कई बातें साफ़ होती हैं.

सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि स्वास्थ्य सेवाएं चमकदार धंधा कैसे बनने दी गईं?

चैरिटेबल ट्रस्ट अस्पतालों को कैसे कारोबार का अड्डा बना रहे हैं? अस्पतालों में ऐसा क्या है कि लोग आंख मूंदकर अपना पैसा यहां लगा रहे हैं?

जांच हो तो बहुत सी बातें साफ़ हो सकती हैं. लेकिन जांच करेगा कौन?

हरिओम आनंद का अंतिम संस्कार कर दिया गया है. उनके नाम पर बने जिस आनंद अस्पताल की दूर-दूर तक शाख थी वो अब किसी इमारत की तरह खड़ा है.

बहुत संभव है कि हरिओम आनंद की मौत के साथ ही क़र्ज़ का हिसाब भी ख़त्म हो जाए और जिन लोगों ने अपना पैसा ब्याज़ के लालच में दिया वो कभी अपना पैसा वापस ही ना पा सकें.

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