केजीएमयू में इंडियन काउंसिल ऑफ़ मेडिकल रिसर्च के निर्देशन में चल रहे प्लाज़्मा थेरेपी ट्रायल के सकारात्मक नतीजे मिले हैं.
अस्पताल में क़रीब एक दर्जन कोरोना मरीज़ों पर इस थेरेपी का ट्रायल किया गया है जिनमें से आधे ठीक हो गए हैं. ये लोग पहले से कई गंभीर बीमारियों से भी पीड़ित थे.
अमर उजाला ने केजीएमयू के सूत्रों के हवाले से बताया है कि आठ दिन अस्पताल में रहने के बाद ये मरीज़ ठीक होकर डिस्चार्ड हो गए हैं.
अस्पताल ट्रायल में शामिल मरीज़ों की निगरानी कर रहा है. इन मरीज़ों के स्वास्थ्य में सुधार हो रहा है.
केजीएमयू में 26 अप्रैल को प्लाज़्मा थेरेपी का ट्रायल शुरु हुआ था.
हालांकि केजीएमयी में जिस पहले मरीज़ को प्लाज़्मा थेरेपी दी गई थी उसे बचाया नहीं जा सका था.
पीजीआई में भी प्लाज़्मा थेरेपी की तैयारी
वहीं एसजीपीजीआई में भी प्लाज़्मा थेरेपी देने की तैयारी चल रही है. यहां तीन मरीज़ों ने अपना प्लाज़्मा डोनेट किया है. फिलहाल पीजीआई प्रशासन आईसीएमआर के संपर्क में हैं और यहां भी जल्द ही प्लाज़्मा थेरेपी शुरू हो सकती है.
राजधानी लखनऊ के लोहिया संस्थान ने भी कोरोना से ठीक हुए मरीज़ों का प्लाज़्मा डोनेट कराने की तैयारी कर ली है.
क्या होती है प्लाज़्मा थेरेपी
प्लाज़्मा थेरेपी को मेडिकल साइंस की भाषा में प्लास्माफेरेसिस (plasmapheresis) नाम से जाना जाता है.
प्लाज़्मा थेरेपी में खून के तरल पदार्थ या प्लाज्मा को रक्त कोशिकाओं (blood cells) से अलग किया जाता है.
इसके बाद यदि किसी व्यक्ति के प्लाज़्मा में अनहेल्थी टिशू मिलते हैं, तो उसका इलाज समय रहते शुरू किया जाता है.
प्लाज़्मा थेरेपी से इलाज इस धारणा पर आधारित है कि वे मरीज़ जो किसी संक्रमण से उबर जाते हैं उनके शरीर में संक्रमण को बेअसर करने वाले प्रतिरोधी ऐंटीबॉडीज़ विकसित हो जाते हैं. इन ऐंटीबॉडीज़ की मदद से कोविड-19 रोगी के रक्त में मौजूद वायरस को ख़त्म किया जा सकता है.
प्लाज़्मा थेरेपी के सकारात्मक नतीजों को देखते हुए दिल्ली में सरकार ने एक प्लाज़्मा बैंक भी शुरू किया है जहां से ज़रूरत पड़ने पर प्लाज़्मा लिया जा सकता है.
कुछ लोग प्लाज़्मा की ब्लैक मार्केटिंग भी कर रहे हैं. मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक एक मरीज़ से प्लाज़्मा के लिए 70 हज़ार से एक लाख रुपए तक भी लिए जा रहे हैं.
दिल्ली में पुलिस ने प्लाज़्मा के नाम पर धोखाधड़ी करने वाले लोगों को गिरफ़्तार भी किया है.