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बाबा रामदेव का दावाः पतंजलि ने बना ली है कोरोना की दवा, लेकिन कई सवाल भी

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पतंजलि योगपीठ के संस्थापक बाबा रामदेव ने आज एक प्रेस कांफ्रेंस में कोरोना की दवा बना लेने का दावा किया. पतंजलि ने इस दवा का नाम कोरोनिल रखा है

बाबा रामदेव ने दावा किया है कि उनकी बनाई गई दवाई का सौ लोगों पर क्लीनिकल टेस्ट किया गया है जिनमें से 65 मरीज़ तीन दिन के भीतर पॉज़ीटिव से नेगेटिव हो गए. रामदेव ने दावा किया है कि जिन सौ लोगों पर ट्रायल किया गया था उनमें से सभी सात दिन के भीतर ठीक हो गए.

रामदेव ने ये भी कहा कि उनकी टीम ने सभी वैज्ञानिक नियमों का पालन किया है. उन्होंने कहा कि भले ही आज लोग हम पर शक करें लेकिन हमारी दवा का डेथ रेट शून्य है और हमने इस वैज्ञानिक तौर पर प्रमाणित किया है. रामदेव ने कहा कि उनकी बनाई दवा अगले सप्ताह तक बाज़ार में आ जाएगी.

‘दुनिया इसका इंतजार कर रही थी कि कोरोना वायरस की कोई दवाई निकले, आज हमें गर्व है कि कोरोना वायरस की पहली आयुर्वेदिक दवाई को हमने तैयार कर लिया है. इस आयुर्वेदिक दवाई का नाम कोरोनिल है.’

उन्होंने कहा कि दवा में सौ प्रतिशत देसी पदार्थों का इस्तेमाल किया गया है. उन्होंने बताया, ‘दवा में मुलैठी-काढ़ा समेत कई चीज़ों को डाला गया है. साथ ही गिलोय, अश्वगंधा, तुलसी, श्वासरि का भी इस्तेमाल किया गया.’

पतंजलि ने दावा किया है कि यह शोध संयुक्त रूप से पतंजलि रिसर्च इंस्टीट्यूट (पीआरआई), हरिद्वार एंड नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस (नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंस), जयपुर द्वारा किया गया है. दवा का निर्माण दिव्य फार्मेसी, हरिद्वार और पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड, हरिद्वार के द्वारा किया जा रहा है.

नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंस जयपुर रहा है विवादित

निम्स जयपुर स्थित एक निजी मेडिकल कॉलजे और यूनिवर्सिटी है. इसका शोध क्षेत्र में कोई ख़ास नाम नहीं है. नाम से भले ही ये कोई सरकारी संस्थान लगे लेकिन ये एक निजी यूनिवर्सिटी है.

साल 2016 में निम्य यूनिवर्सिटी के चेयरमैन बलात्कार के आरोप में गिरफ़्तार भी हो चुके हैं.

2017 में निम्स के निदेशक डॉ. अनुराग तोमर को भ्रष्टाचार के आरोप में भी गिरफ़्तार किया गया था.

अभी नहीं मिला है कोरोना का इलाज

दुनियाभर में वैज्ञानिक कोरोना वायरस का इलाज खोज रहे हैं लेकिन अभी तक इसका कोई टीका विकसित नहीं हो सका है.

कई दवाओं के असरदार होने के दावे किए जा चुके हैं.

मलेरिया की दवा हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन को कोरोना के इलाज में कारगर बताया गया था लेकिन अब डब्ल्यूएचओ ने इसका भी टेस्ट रोक दिया है. इससे पहले भी रेमेडीसिविर दवा के असरदार होने की बात सामने आई थी लेकिन ये दवा अभी भारतीय बाज़ार में उपबल्ध नहीं हो सकी है.

हाल ही में ब्रिटेन में किए गए एक शोध में पाया गया है कि डेक्सामेथासोन नाम की दवा गंभीर मरीज़ों के इलाज में असरदार साबित हो रही है और इससे तीस प्रतिशत तक मरीज़ों की जान बच रही है. लेकिन ये दवा भी सिर्फ़ गंभीर या बेहद गंभीर मरीज़ों पर ही असर दिखा रही है.

अपने आप ठीक हो जाते हैं कोरोना के अधिकतर मरीज़

अब तक कोरोना वायरस को लेकर जो शोध हुए हैं उनसे पता चला है कि कोरोना के अधिकतर मरीज़ों में इसके लक्षण नहीं दिखाई देते हैं और वो अपने आप ही ठीक हो जाते हैं.

सिर्फ़ उन मरीज़ों को ही अस्पताल में भर्ती होने की ज़रूरत होती है जिनकी हालत गंभीर होती है.

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