क्या आप भी इस सवाल पर अटके या जवाब गूगल करने की कोशिश की. अगर ऐसा है तो आपको अपने कम ज्ञान पर शर्मिंदा होने की ज़रूरत बिलकुल नहीं है.
क्योंकि जब दिन भर टीवी पर बैठकर डीबेट करने वाले भाजपा प्रवक्ता को ही इस सवाल का जवाब पता न हो तो फिर भला एक आम आदमी से ये उम्मीद कैसे की जाए कि उसे श्रम मंत्री के नाम का पता हो.
दसअसल, एक टीवी डीबेट में जब कांग्रेस प्रवक्ता रोहन गुप्ता ने बीजेपी प्रवक्ता गौरव भाटिया से भारत के श्रम मंत्री का नाम पूछा तो वो बगले झांकने लगे.
कांग्रेस प्रवक्ता ने फिर गौरव भाटिया को गूगल सर्च न करने की चुनौती दी.
ये कहा जा सकता है कि बीजेपी के प्रवक्ता को भारत के श्रम मंत्री का नाम नहीं पता तो इसमें कौन सी बड़ी बात है. ठीक है ये बड़ी बात नहीं है.
लेकिन ये इतनी छोटी भी बात नहीं है. श्रम मंत्रालय भारत के सबसे अहम मंत्रालयों में से एक है. देश के कोरोड़ों श्रमिकों के भले के लिए काम करता है. योजनाएं बनाता है.
ऐसे में किसी को देश के श्रम मंत्री का नाम न पता हो तो ये मामूली बात नहीं है. लेकिन ये कोई अपराध भी नहीं है.
दरअसल, बीते कुछ सालों से, ख़ासकर जब से नरेंद्र मोदी सत्ता में आए हैं. मीडिया दो ही नामों को दिन रात तरजीह देता है.
एक तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और दूसरे गृहमंत्री अमित शाह.
इनके अलावा कम ही ऐसा होता है कि कोई दूसरा मंत्री सुर्खियों में जगह बना पाए. यहां तक की रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह तक कई-कई दिन ख़बरों से ग़ायब रहते हैं.
ऐसे में अगर बीजेपी के प्रवक्ता को देश के श्रम मंत्री का नाम न मालूम हो तो इसमें उनकी ग़लती कहां है.
उन्हें पता है, सिर्फ़ दो नाम लेने से देश की जनता तक मैसेज पहुंच जाएगा.
वैसे, श्रम मंत्री संतोष सिंह गंगवार को कैसा लग रहा होगा, ये उनसे न ही पूछा जाए तो बेहतर है.
इस लेख में पैदल चलने, रेलों में मरने, भूखे रहने और दर-दर की ठोकरें खा रहे श्रमिकों की बात नहीं की गई है.
कर भी लेते तो क्या होता, किसी को कोई फ़र्क़ पड़ता है क्या?