लॉकडाउन ने आज़मगढ़ के धड़नी ताजनपुर गांव की रवीना की ज़िंदगी को पूरी तरह बर्बाद कर दिया है.
पहले दिल्ली में उन्होंने अपना बच्चा खोया. फिर किसी तरह आज़मगढ़ लौटीं तो उनके पति की रहस्यमय परिस्थितियों में मौत हो गई.
अब रवीना की आंखों में गहरी उदासी और हज़ारों सवाल हैं. पति की पासपोर्ट साइज़ फोटो हाथ में लिए वो इस उम्मीद में तस्वीर खिंचाती हैं कि कोई उनकी कहानी को सुनेगा और उन्हें न्याय मिलेगा.
दरअसल रवीना अपने पति अंगद राम के साथ दिल्ली में रहती थीं. उनके पति जीटीबी अस्पताल की कैंटीन में नौकरी करते थे.
पहले वह ताहिरपुर गांव में किराए पर रहते थे लेकिन कम कमाई में किराया भरना उनके लिए मुश्किल हो रहा था. फिर ये परिवार गाज़ियाबाद में रहने लगा.
लेकिन लॉकडाउन में उनके पति के लिए काम करना मुश्किल हो गया. रवीना गर्भवती थीं. पैसे की तंगी और खानपान की कमी से रवीना का ठीक से ध्यान नहीं रखा जा सका.
उनके पास जो भी पैसे थे वो अल्ट्रासाउंड और दवाइयों में ख़र्च हो गए. दस अप्रैल को रवीना ने मरे हुए बच्चे को जन्म दिया.
लॉकडाउन में फंसे हुए श्रमिक किसी भी तरह घर लौटने की जुगत लगा रहे थे. रवीना ने भी जैसे-तैसे अपने घर से पैसे मंगवाए और 19 मई को श्रमिक स्पेशल ट्रेन के ज़रिए अपने पति के साथ दिल्ली से आज़मगढ़ पहुंच गई.
एक रात क्वारंटीन में रहने के बाद वो अपने घर लौट गईं जहां वो तेरह दिन तक घर के बाहर बनी मढ़ई में क्वारंटीन में रहीं.
गांव लौटे अंगदराम की लाश 6 जून को गांव के बाहर नींबू के पेड़ से लटकती मिली. पुलिस ने इसे आत्महत्या माना है.
लेकिन परिवार का कहना है कि अंगद राम की हत्या की गई है. अंगद राम सिर्फ़ 25 साल के थे
सामाजिक संगठन रिहाई मंच के कार्यकर्ता इस परिवार का हाल लेने पहुंचे.
रिहाई मंच से जुड़े राजीव यादव का कहना है कि इस मामले में दलित युवक अंगद राम की हत्या का शक़ होता है.
‘अंगद राम की मौत और उनके परिजनों के आरोपों की पूरी जांच होनी चाहिए. ये मानवाधिकार उल्लंघन का एक गंभीर मामला है.’
राजीव यादव ने कहा, ‘कोरोना महामारी के दौर में मज़दूर बहुत कष्ट उठाकर अपने गांव पहुंचे हैं. अब अगर किसी हत्या को आत्महत्या कहा जा रहा है तो ये गंभीर संकट खड़ा कर देगा. इस मामले में पुलिस ने न ही परिजनों के अब तक बयान दर्ज किए हैं और न ही उनक ओर से कोई मुक़दमा दर्ज किया है.’