अमरीका इस समय कोरोना वायरस और नस्लीय हिंसा की दोहरी मार झेल रहा है.
कोरोना वायरस संक्रमण के 18 लाख मामले हैं, एक लाख से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है. अर्थव्यवस्था चौपट है. चार करोड़ से अधिक लोग बीते दो महीनों में बेरोज़गार हो चुके हैं.
बीते एक सप्ताह से कई शहर नस्ली हिंसा की आग में झुलस रहे हैं. न्यू यॉर्क में हालात काबू करने के लिए कर्फ्यू लगाना पड़ रहा है.
राष्ट्रपति ट्रंप बौखलाए हुए हैं. अफ्रीकी अमरीकी मूल के जॉर्ज फ्लॉयड की पुलिसकर्मियों के हाथों हत्या का विरोध कर रहे प्रदर्शनकारी व्हाइट हाउस तक पहुंच गए तो ट्रंप को बंकर में जाकर छुपना पड़ा.
ये कोई सामान्य बात नहीं है कि दुनिया के सबसे ताक़तवर देश का राष्ट्रपति अपने ही देश के नागरिकों के डर से बंकर में छुप जाए.
अमरीका में जो हो रहा है उसकी वजह क्या है?
In George Floyd’s hometown, right near where he grew up the white community kneeled down in front of the black community asking for forgiveness after years of racism, inequality, police brutality. Afterwards those standing kneeled down as well and everyone united in prayer. 😭🙌🏾 pic.twitter.com/T1ai1b8Nw7
— Brigitte Franklin (@BrigitteFrankln) June 1, 2020
जॉर्ज फ्लॉयड के घर के पास काले लोगों के आगे झुकते गौरे अमरीकी.
नस्लीय हिंसा
पहले बात करते हैं नस्लीय हिंसा की.
दरअसल अमरीका में क़रीब चौदह प्रतिशत लोग अफ्रीकी मूल के हैं. ये अल्पसंख्यक दशकों से समाज के हाशिए पर रहे हैं. तिरस्कार और अपमान झेलते रहे हैं.
मिनियापोलिस में पुलिस कर्मी कई मिनट तक अपने घुटने से जॉर्ज फ्लॉयड के गले को दबाता रहा. एक गौरा पुलिसकर्मी की एक काले व्यक्ति पर की गई बर्बरता का वीडियो दुनियाभर में करोड़ों लोग देख चुके हैं.
फ्लॉयड बार-बार कह रहे हैं कि मैं सांस नहीं ले सकता, लेकिन पुलिसकर्मियों पर कोई फ़र्क नहीं पड़ता.
फ्लॉयड की इस घुटन को अफ़्रीकी अमरीकियों ने महसूस किया है. वो सड़कों पर हैं और उनके साथ वो गौरे भी सड़कों पर हैं जो ह्यूमन राइट्स की बात करते हैं और एक लोकतांत्रिक अमरीका में विश्वास रखते हैं.
जॉर्ज फ्लॉयड पहले अफ्रीकी अमरीकी नहीं है जो पुलिस के हाथों बर्बरता से मारे गए हैं. उनसे पहले इसी तरह की परिस्थितियों में कई और मौतें हो चुकी हैं.
ब्लैक लाइव्स मैटर का अभियान पहले भी चल चुका है.
लेकिन इस बार प्रदर्शन ज्यादा उग्र हैं. प्रदर्शनकारियों की आवाज़ ज़्यादा तेज़ है.
“Black Lives Matter!” chants at the giant youth-led march through #Baltimore over the death of #GeorgeFloyd and other black people at the hands of police. pic.twitter.com/6aXnlYqnbg
— Colin Campbell ☀️ (@cmcampbell6) June 1, 2020
कोरोना ने कालों को मारा
उसकी वजह है कि कोरोना महामारी की सबसे ज़्यादा मार अफ्रीकी अमरीकियों पर पड़ी है.
अमरीका में वायरस की वजह से मरने वालों में अधिकतर अफ्रीकी अमरीकी हैं. नौकरियां गंवाने वालों में भी ज़्यादातर अफ्रीकी अमरीकी हैं.
जॉर्ज फ्लॉयड की नौकरी भी हाल ही में गई थी. पुलिस ने उन्हें नकली नोट इस्तेमाल करने के जुर्म में गिरफ़्तार किया था.
एक और काले अमरीकियों की घुटन है तो दूसरी और ट्रंप की विभाजनकारी राजनीति है.
इस साल अमरीका में चुनाव होने हैं, और ट्रंप विभाजन की राजनीति करते हैं. उनके अधिकतर समर्थक गौरे हैं जो गौरों की श्रेष्ठता में विश्वास रखते हैं. रूढ़िवादी ईसाइयों को भी उन्होंने रिझा रखा है.
चुनावी साल में ट्रंप की सियासत
ट्रंप ने अपने कार्यकाल में अमरीकी अर्थव्यवस्था को गति दी थी. बाज़ार चढ़ रहा था. लेकिन कोरोना वायरस ने सब गुड़ गोबर कर दिया है. अमरीकी अर्थव्यवस्था धड़ाम है.
अब चुनावी साल में ट्रंप वोटरों को वो काम दिखाकर वोट नहीं मांग सकते जिन पर वायरस ने पानी फेर दिया है.
ऐसे में शहरों में हो रही हिंसा से लोगों के मन में जो दीवार खड़ी हो रही है वो ट्रंप को राजनीतिक तौर पर सूट करती है.
इस दीवार के एक ओर खड़े लोग उनके पक्के वोटर होंगे. बस ट्रंप यही चाहते हैं कि ये दीवार और ऊंची हो और उनके समर्थकों की संख्या और बढ़े ताकि वो फिर से चुनाव जीत लें.
और अफ्रीकी अमरीका फ्लॉयड की मौत के बहाने उस गुस्से का इज़हार कर रहे हैं जो उनमें कई साल से इकट्ठा हो रहा है.
कोरोना वायरस के बाद के हालात ने उनके ग़ुस्से को और बढ़ा दिया है.