हिंदी समाचार चैनल आजतक पर प्रसारित एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि उत्तर प्रदेश के चित्रकूट की खदानों में काम देने के बदले नाबालिग लड़कियों से ज़बरदस्ती सेक्स किया जाता है.
चैनल की रिपोर्ट में पीड़िता और उनके परिजनों के बयान प्रसारित किए गए हैं. दिहाड़ी के बदले देह का ये प्रकरण किसी भी संवेदनशील व्यक्ति की अंतरात्मा को हिला देने वाला है.
लेकिन हमेशा की तरह उत्तर प्रदेश सरकार डिनायल मोड में आ गई है. समाचार चैनल पर रिपोर्ट प्रसारित होने के बाद पहले तो चित्रकूट के ज़िलाधिकारी ने जांच के आदेश दिए और फिर स्वयं ही सभी आरोपों को फ़र्ज़ी क़रार दे दिया.
उत्तर प्रदेश के चित्रकूट में 10 से 18 साल की बच्चियों के साथ खदानों में काम के बहाने दरिंदगी की जा रही है। ऐसा कैसे हो सकता है कि इन नन्ही बच्चियों को इस तरह नोचा जा रहा है और प्रशासन को भनक तक नहीं है?
बेहद शर्मनाक! @myogiadityanath जी, तुरंत सख़्त ऐक्शन करवाएँ! pic.twitter.com/ytra8igwEu
— Swati Maliwal (@SwatiJaiHind) July 7, 2020
एक बयान में ज़िलाधिकारी ने कहा है, ‘मैंने स्वंय शीर्ष अधिकारियों के साथ गांव पहुंचकर जांच की है. पीड़ितों ने ऐसी कोई भी घटना होने से इनकार किया है.’
आज तक की रिपोर्ट के विषय मे रात्रि मे ही कप्तान साहब के साथ तथा आयुक्त महोदय एवं dig सर की उपस्थिति मे पूरे प्रकरण पर सम्बंधित बच्चियों, उनके परिवार एवं अन्य लोगों से भी वार्ता की गयी, उन सभी लोगो ने ऐसी किसी भी प्रकार की घटना से साफ इंकार किया हैँ, @CMOfficeUP @AwasthiAwanishK pic.twitter.com/HIlGXzSnO7
— DM Chitrakoot (@ChitrakootDm) July 8, 2020
ज़िलाधिकारी की ओर से जारी बयान में कहा गया है, ”मैंने और हमारे पुलिस अधीक्षक ने गोडा गांव के कुछ परिवारों से बात की है, उन्होंने यौन शोषण के आरोप ख़ारिज किए हैं. बाद में हमने करवी में अकबरपुर गांव का दौरा किया, जहां हमने वीडियो रिपोर्ट में दिखाए गए परिवार और लड़कियों से, मंडलायुक्त और डीआईजी की मौजूदगी में बात की है. लड़कियों ने और उनके परिजनों ने इस बात को खारिज किया है कि उनका कभी भी यौन शोषण किया गया है. हमने आजतक से संपर्क करके उनकी स्टोरी का आधार जानना चाहा और उनसे इस बारे में अधिक जानकारी मांगी. लेकिन हमें कोई जानकारी नहीं दी गई है. हमने पूरे प्रकरण की जांच के लिए 6 सदस्यीय टीम गठित कर दी है. इसका नेतृत्व एसडीएम कर रहे हैं.”
अपनी रिपोर्ट के साथ है आजतक
वहीं आजतक की ओर से टीवी पर प्रसारित एक बयान में कहा गया है कि वह अपनी रिपोर्टर की रिपोर्ट पर पूरा विश्वास करता है और उसमें दिखाए गए तथ्यों को सही ठहराता है. आजतक ने कहा है कि ये रिपोर्ट जनहित में प्रसारित की गई है.
आजतक के 'ऑपरेशन नरकलोक' के खुलासे पर लीपापोती की कोशिश में जुटा प्रशासन #NarkLok2
(@mausamii2u ) https://t.co/Ne2H9AIwcm— AajTak (@aajtak) July 8, 2020
ये रिपोर्ट आजतक की वरिष्ठ संवाददाता मौसमी सिंह ने की है. आजतक रेडियो से बात करते हुए मौसमी सिंह ने कहा है कि वो प्रशासन के रवैये से हैरान हैं.
हम अपनी खबर पर अडिग हैं 8pm @aajtak 10 pm @IndiaToday #Naraklok pic.twitter.com/5HZSNNad6g
— Mausami Singh/मौसमी सिंह (@mausamii2u) July 8, 2020
उन्होंने कहा, पहले तो प्रशासन ने जांच कराने की बात कही और अब रिपोर्ट में दिखाए गए सच को खारिज कर रही है. ये दिखाता है कि सरकार सच को स्वीकार नहीं करना चाहती है.
पहले भी पत्रकारों पर ही एक्शन करती रही है सरकार
ये पहली बार नहीं है जब योगी सरकार ने सच्चाई का आइना दिखाने वाली रिपोर्ट को खारिज किया है. उत्तर प्रदेश के मिर्ज़ापुरि में जब पवन जायसवाल नाम के स्थानीय पत्रकार ने मिड डे मील में बच्चों को नमक रोटी खिलाए जाने की रिपोर्ट प्रकाशित की थी तब ज़िला प्रशासन ने उनके ख़िलाफ़ ही मुक़दमा दायर कर दिया था.
यहां तक की रिपोर्टर को सूचनाएं देने वाले उनके स्थानीय स्रोत को गिरफ़्तार भी कर लिया गया था. रिपोर्टर पर प्रशासन की छवि ख़राब करने के लिए साज़िश करने के आरोप लगाए गए थे.
स्क्रॉल वेबसाइट की रिपोर्टर पर मुक़दमा
हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गोद लिए गांव से रिपोर्ट करने वाली स्क्रॉल वेबसाइठ की पत्रकार पर भी यूपी पुलिस ने मुक़दमा दर्जे कराया है.
पत्रकार सुप्रिया शर्मा ने प्रधानमंत्री के गोद लिए गांव डोमरी में भुखमरी पर रिपोर्ट की थी. पत्रकार सुप्रिया ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया था कि प्रधानमंद्री नरेंद्र मोदी के गोद लिए गांव डोमरी में लोग लॉकडाउन के बाद से परेशान है और उन्हें भूखे तक रहना पड़ा है.
पत्रकार ने अपनी रिपोर्ट में जिस महिला से बात की थी उसी ने उन पर जातिसूचक शब्दों का इस्तेमाल करने और अपनी ग़रीबी का मज़ाक बनाने के लिए मुक़दमा दर्ज करा दिया था.
मुंह फेरने से क्या सच बदल जाएगा?
जब-जब ऐसी कोई रिपोर्ट आती है जो यूपी सरकार को सच्चाई का आइना दिखाए, सरकार सच को स्वीकार करने के बजाए डिनायल मोड में आ जाती है.
सरकारी अधिकारी ये भूल जाते हैं कि लोकतंत्र में मीडिया चौथा स्तंभ है और उसकी ज़िम्मेदारी सरकार की कमियों को उजागर करना ही है. पब्लिक रिलेशन और सेल्फ़ी पत्रकारिता के इस दौर में सरकार को ये पसंद नहीं की कोई उन्हें आइना दिखाए या सच से उनका सामना कराए.
भूख की तड़प से मजबूर नाबालिग बेटियों के दिहाड़ी के बदले देह बेचने के सच को स्वीकार करने के लिए जो संवेदनशीलता चाहिए वो ही नदारद दिखती है.
बहुत मुमकिन है कि यूपी पुलिस एक पर्चा पत्रकार मौसमी सिंह के ख़िलाफ़ ही काट दे. हड़बड़ाहट में उत्तर प्रदेश प्रशासन ऐसे क़दम उठाता रहा है.